शापित अनिका: भाग ११

अगली सुबह अनिका सब काम निपटाकर आशुतोष के कमरे में पहुंची तो पाया कि वो अभी भी बिस्तर पर खर्राटे भर रहा था। अनिका ने एक नजर घड़ी पर ड़ाली तो सुबह के नौ बज रहे थे। अनिका आशुतोष को जगाना चाहती थी लेकिन उठाने में झिझक रही थी। अभी वो इसी दुविधा में थी मिशा हाथ में कॉफी का कप लेकर कमरे में आ पहुंची।


"ये इतनी जल्दी नहीं उठने वाले...." मिशा ने हंसते हुये कॉफी का मग टेबल पर रखा और पास ही रखे पानी का जग उठाकर आशुतोष के ऊपर खाली कर दिया, जिससे आशुतोष हड़बड़ाकर उठ बैठा।


"मिशा की बच्ची.... ये क्या शरारात है?" आशुतोष ने गुस्से में बोला।


"आजकल अघोरी बाबा नहीं मिल रहे हैं सपनों में तो क्या दिन में भी सोते ही रहोगे?" जवाब अनिका ने दिया- "भूल गये कि आज हमें स्वामी जी से मिलने जाना था?"


"जाकर भी कोई फायदा नहीं होगा।" आशुतोष बिस्तर से उठते हुये बोला- "कल रात बात हुई थी उनसे और उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता।"


"व्हट? तो अब हम क्या करेंगें?" अनिका के चेहरे पर मायूसी छा गई।


"उन्होनें दो दिन रूकने को बोला है ताकि कुछ पता लगा सकें। तब तक चिल करो! वैसे भी अभी एग्जाम्स खत्म हुये हैं तो माइंड़ रिफ्रेश कर लो।" आशुतोष बाथरूम में घुसते हुये बोला।


"तुम्हारी कॉफी रखी है टेबल पर।" मिशा ने आवाज लगाई और मुस्कुराकर अनिका से बोली- "टैंशन मत लो दी.... बस दो दिन की तो बात है। ऐसा करते हैं तब तक किसी पिकनिक पर हो आते हैं।"


"मैं टेंशन नहीं लेती...." अनिका भी मुस्कुराई और दोनों कमरे से बाहर चलीं गई।


करीब आधे घंटे बाद सब लोग डायनिंग टेबल पर बैठे थे। आशुतोष के अगल- बगल मिशा और सिड़ थे, जबकि आशुतोष के ठीक सामने अनिका बैठी थी। मि. श्यामसिंह हेड़ की कुर्सी पर थे और अनिका की दायीं और विमला देवी।


"तुमको पता चला कि उसके दिल में क्या चल रहा है? "आशुतोष ने फुसफुसाते हुये मिशा से पूछा।


"तुमको लगता है कि ये इतना आसान है?" मिशा भी फुसफुसाई- "वो मेरी ट्यूटर है और उसी के कारण मैं लास्ट से सेकेंड़ रैंक पर आई हूं। अब अगर वो नाराज हो गई तो फिर आगे की पढ़ाई भगवान के भरोसे तो नहीं कर सकती न!"


"छिः, इतने दिनों में तुमसे एक छोटा सा काम नहीं हुआ?" आशुतोष ने चिढ़कर कहा- "उल्टे तुमको रिजल्ट की पड़ी है।"


"ड्यूड़.... इतना ही छोटा काम है तो खुद ही क्यूं नहीं पूछ लेते?" मिशा भड़कते हुये बोली- "तुम्हें भी तो सिर्फ अपनी ही पड़ी है। मैं अपने हिसाब से कर तो रही हूं न! मैंनें तो पहले ही कहा था कि खुद पटाओ।"


"ओके.... ओके...." आशुतोष उसे शांत करते बोला- "तू अपना टाइम ले लेकिन जल्दी कर यार!"


"देखो! ये मेरे से नहीं होगा। आई मीन वो ट्यूटर है मेरी फ्रेंड नहीं जो मजाक- मजाक में पूछ लिया।" मिशा बोली- "मैं चांस बनाकर दे दूंगी लेकिन अपना काम खुद करना।"


"ये तुम लोग फुसफुसाकर क्या बातें कर रहे हो?" मि. श्यामसिंह ने पूछा, जिनका ध्यान तबसे उन दोनों पर ही था।


"कुछ नहीं पापा.... वो एक्चुअली मैं भाई से कह रही थी कि अब जब अनिका दी के एग्जाम्स भी खत्म हो गये हैं तो क्यों न पिकनिक पर चलें, लेकिन ये तैयार ही नहीं हो रहे।" मिशा ने नकली गुस्सा दिखाते हुये बोला।


"ठीक तो है...." विमला देवी बोलीं- "इसी बहाने तुम लोगों का माइंड भी रिफ्रेश हो जायेगा।"


"हां आशु.... वैसे भी कबसे तुम्हें घूमने- फिरने का मौका नहीं मिला। तुम सबको लेकर मसूरी का चक्कर लगा आओ।"  मि. श्यामसिंह ने भी सहमति जताई।


"अरे! क्या पापा? आप भी न! ले- दे के क्या मसूरी ही रह गया है? कितनी बार तो हो आये हैं...." मिशा ने बुरा सा मुंह बनाया।


"तो कहां जाना है? जहां जाना है वहां जाओ...." मि. श्यामसिंह हंसते हुये बोले।


"उम्म.... सोच कर बताऊंगी।" मिशा ने कहा तो सब हंस पड़े।


* * *



अगले दिन मिशा, सिड़ और अनिका को लेकर आशुतोष हनोल के लिये निकला। हनोल जौनसार- बावर का एक गांव हैं, जहां पर महासू देवता का प्रसिद्ध मंदिर है। वहां जाने का विचार अनिका का था।


"तो कौन से रास्ते से जायें?" आशुतोष ने बगल की सीट पर बैठे सिड़ से पूछा।


"मुझे क्या पता? मैं कौन सा पहले गया हूं?" सिड़ चिढ़ते हुये बोला क्योंकि उसके शिमला- मनाली जाने के प्लान की वाट लग गई थी।


"गूगल में तीन रास्ते हैं, अनिका कौन से रास्ते से जायें? मसूरी या चकराता?" आशुतोष ने पीछे की सीट पर बैठी अनिका से पूछा।


"किसी से भी चल लो। टाइम तो वही लगेगा शायद?" अनिका बोली।


"मसूरी से ही चल लेते हैं। सिड़ जाकर एक सिगरेट का पैकेट लेकर आ जा।" आशुतोष ने गाड़ी रोककर एक सौ का नोट सिड़ की तरफ बढ़ाया। कुछ ही देर में सिड़ सिगरेट लेकर लौटा और आशुतोष ने गाड़ी मसूरी की तरफ दौड़ा दी।


"मसूरी घूमोगे या गाड़ी आगे बढ़ा दूं?" मसूरी पहुंचने पर आशुतोष ने गाड़ी रोककर बैक- मिरर में झांकते हुये पूछा।


"नहीं यार! सीधे चल लो। यहां तो आते टाइम भी घूम सकते हैं।" मिशा ने कहा।


"और वैसे भी ३५ किमी तो कुल है। कभी भी आ जायेंगें।" सिड़ ने भी कहा।


"ओके...." आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा और एक सिगरेट सुलगा ली।


"ईयू...." आशुतोष के धुंआ छोड़ते ही मिशा ने बुरा सा मुंह बनाया- "ड्यूड़.... सिगरेट पीनी है तो गाड़ी साइड़ लगा दो। इसकी स्मैल से मेरा तो सिर फट जायेगा।"


"और जब पार्टीज में वोड़का के शॉट्स लगाती है, तब सिर नहीं दुखता?" आशुतोष ने एक कश लेकर सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक दी।


"हे.... मैं वोड़का नहीं पीती।" मिशा मुस्कुराई- "सिर्फ शैंपेन और व्हिस्की और वो भी सिर्फ दो पैग। उससे ज्यादा नहीं।" मिशा के जवाब पर सब मुस्कुरा दिये।


"बाय द वे, तुमको हनोल जाने की क्या सूझी?" आशुतोष ने अनिका से पूछा- "आई नो कि टूरिस्ट प्लेस है लेकिन ये माइथोलॉजिकल प्लेस है न! हम कहीं भी जा सकते थे फिर हनोल ही क्यो?"


"कहते हैं कि महासू देवता न्याय के देवता हैं और मुझे लगता है कि उनके आशीर्वाद से अघोरा को हराने में आसानी होगी।" अनिका मुस्कुराकर बोली।


"अरे यार तो अल्मोड़ा चलते न!" सिड़ बोल पड़ा- 

"वहां भी तो गोलू देवता का मंदिर है। अपने ही डिस्ट्रिक में जाने का क्या मतलब?"


"क्योंकि महासू चार हैं तो मदद मिलने के ज्यादा चांस हैं.... या शायद इन्हें जौनसार के जादू पर ज्यादा भरोसा है।" आशुतोष ने कहकहा लगाया।


"नहीं, क्योंकि वो गढ़वाल के लोक- देवता हैं।" अनिका चिढ़कर बोली।


"सॉरी.... बट आई थिंक जौनसार के!" सिड़ ने मुस्कुराते हुये कहा।


"तुममें से किसी को फ्रेश होना है? चल सिड़ अपन होकर आतें हैं।" आशुतोष ने एक सुलभ शौचालय के आगे गाड़ी रोकी और सिड़ को लेकर यूरिनल की तरफ बढ़ गया। उनके पीछे- पीछे अनिका और मिशा भी सुलभ- शौचालय के कमरों में घुस गई।


"चल बेटे, जल्दी से दो कश लगा ले...." आशुतोष ने यूरिनल से निकलते ही सिगरेट की डिबिया और लाइटर सिड़ की ओर बढ़ा दिये और हाथ धोने बढ़ गया। जैसे ही अनिका और मिशा कमरों से बाहर आईं आशुतोष ने सिड़ से सिगरेट ले ली और कश लगाने लगा।


"चलें?" मिशा ने आंखें तरेरते हुये पूछा।


"चलो!" आशुतोष ने सिगरेट का आखिरी कश लिया और मुस्कुराते हुये गाड़ी की तरफ बढ़ गया।


करीब पांच घंटे के सफर के बाद चारों हनोल के महासू मंदिर पहुंचे। हनोल की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती थी और महासू मंदिर को देखकर तो चारों विस्मित से रह गये। पहाड़ी शैली में बना यह मंदिर स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना था।


"वाऊ यार.... ये तो एकदम मास्टरपीस है।" सिड़ की शिमला न जाने की नाराजगी भी जैसे काफूर हो गई।


"कहतें हैं कि ये मंदिर हूणों ने बनाया था।" अनिका ने सबको जानकारी दी- "असल में महासू देवता चार भाई हैं- बासिक महासू, पबासिक महासू, बोठिया महासू और चालदा महासू। ये मंदिर खासकर बोठिया महासू को समर्पित है। यहां के लोग मानते हैं कि ये चारों भाई शिव के अंश हैं और महासू का नाम भी महाशिव का बिगड़ा नाम हैं।"


"लोकेशन तो बढ़िया है, सुना है यहां ट्रैंकिंग भी होती है?" मिशा ने उत्साह से पूछा।


"हमारे पास इतना टाइम नहीं है मिशा...." आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा- "अगर अघोरा से बच गये तो तुम्हें दुबारा यहां ले आयेंगें।"


चारों ने मुस्कुराते हुये महासू मंदिर में प्रवेश किया। मंदिर तीन कक्षों या मंड़पों में बंटा था। पहला कमरा एक आयताकार मंडप था, जिसमें कुछ लोग पारंपरिक नौबत बजा रहे थे। महिलाओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी, इसलिये अनिका और मिशा को इसी कमरे में रूकना पड़ा।


इस कमरे को पार कर सिड़ और आशुतोष ने दूसरे कमरे में प्रवेश किया। यह एक वर्गाकार कमरा था, जिसके बांयी तरफ चारों महासू देवों के वीरों काफला वीर, गुड़ारू वीर, कैलू वीर और शैड़कुड़िया वीर के छोटे- छोटे मंदिर थे, जो क्रमशः बासिक, पबासिक, बोठिया और चालदा महासू के वीर या सेनापति माने जातें हैं।


कमरे में पुजारी और कुछ अन्य लोग जिन्हें पश्वा कहते हैं, बैठे थे। पश्वाओं के बारे में मान्यता है कि उन पर महासू देवता अवतरित होकर लोगों की समस्याओं का हल देतें हैं। इसके आगे वाले कक्ष यानि गर्भगृह में केवल पुजारी ही जा सकतें हैं। यहां का वातावरण देखकर आशुतोष और सिड़ के दिल में ड़र सा बैठ गया और साथ में लाया हुआ कड़ाह (आटा और गुड़) और भेंट देवार्पण कर वो भाहर भाग निकले।


"यार जो भी हो लेकिन अंदर एक एनर्जी तो फील हुई थी।" गाड़ी में बैठते हुये आशुतोष बोला।


"मुझे तो लगा कि किसी तांत्रिक की गुफा में आ गये...." सिड़ ने अंगड़ाई ली- "पश्वाओं का हिलना देखकर तो रोंगटे खड़े हो गये।"


"इस मंदिर की बहुत मान्यता है। इसे उत्तराखंड का पांचवा धाम यूं ही नहीं कहते...." अनिका ने मुस्कुराकर कहा- "पहले शिमला, सिरमौर और सोलन डिस्ट्रिक समेत इस इलाके को मंदिर के नाम पर महासू कहते थे पर फिर ये इलाका यू.पी. में गया और राज्य- विभाजन के बाद उत्तराखंड में आ गया।"


"आपको तो हिस्ट्री का प्रोफेसर होना चाहिये था।" मिशा ने अनिका की चुटकी ली।


"अपनी संस्कृति के बारे में जागरूक रहना अच्छी बात है...." आशुतोष ने मुस्कुराकर अनिका का पक्ष लिया- "तुम लोगों को तो ये भी पता नहीं होगा कि यहां से कुछ दूर पर दुर्योधन का भी मंदिर है।"


"व्हट? दुर्योधन....? यू मीन वो महाभारत वाला, जिसने चीरहरण करवाया था?" सिड़ ने अविश्वास और आश्चर्य के मिले- जुले भाव से पूछा।


"हां वहीं.... जखोल के लोग दुर्योधन को अपना क्षेत्रपाल मानतें हैं।" अनिका ने जवाब दिया- "लेकिन वो इलाका उत्तरकाशी डिस्ट्रिक में आता है।"


"अनबिलीविबल...." मिशा ने गहरी सांस छोड़ते हुये कहा।


"ये इलाका महाभारत से काफी जुड़ा है। कुछ ही दूर पर लाखामंडल है, जिसके बारे में कहते हैं कि वहीं पांडवों के लिये लाक्षागृह बनाया गया था।" अनिका ने जानकारी दी- "तुम लोग तो मंदिर से ज्यादा ही जल्दी भाग आये। यहां मंदिर में दो छोटे- छोटे पत्थर हैं, जिनका वजन छः मन और नौ मन हैं। कहते हैं उनसे भीम कंचे खेलते थे।"


"अब ये बताओ कि आगे क्या करेंगें?" आशुतोष ने तीनों से पूछा- "सुना है पास ही मैंद्रथ में देवलाड़ी माता का मंदिर भी है और यहां कोई म्यूजियम भी है। घूमना है तो चलो पहले गेस्ट- हाउस होकर आतें हैं वरना सीधे चकराता के लिये निकलते हैं।"


"अब आये हैं तो घूम ही लेते हैं। चकराता तो कल भी घूम लेंगें!" सिड़ ने टेड़ी गर्दन कर मिशा की ओर देखा।


"पहले कुछ खा लेते हैं? सुबह से कुछ नहीं खाया और मेरे पेट में चूहे दौड़ रहें हैं। फिर आकर भीम के पत्थर उठायेंगें।" मिशा ने नाटक करते हुये कहा तोचारों रात के करीब आठ बजे गेस्ट- हाउस लौटे। आज उनका पूरा दिन महासू- मंदिर, मैंद्रथ मंदिर, हनोल म्यूजियम और अन्य जगहों पर घूमने में बीता था। गेस्ट- हाउस पहुंचते ही चारों ने साथ लाया खाना खाया और सोने चले गये। उन्हें दो कमरे मिले थे इसलिये एक कमरे में मिशा और अनिका रह रहे थे, जबकि दूसरा कमरा सिड़ और आशुतोष को मिला।


"यार बाकी सब तो ठीक है, पर ये पश्वा वाला सिस्टम थोड़ा अजीब नहीं है?" सिड़ हंसा।


"क्यों? अजीब क्यों है? जागरों में भी तो देवों का भाव आता है न!" आशुतोष ने कहा।


"यार ये कुछ ऑड़ नहीं लगता? मतलब टेक्नोलॉजी के युग में आप सिर हिलाकर बोलो कि मुझ पर देवता चढ़ आया है तो कौन बेवकूफ यकीन करेगा?" सिड़ ने उत्तेजित होकर कहा।


"हां, बेवकूफ ही यकीन नहीं करेगा।" आशुतोष ने व्यंग्य किया- "हमारे इधर जागरों में भी तो यही होता है और देवता जब चढ़ता है तो समस्या और हल बता देतें हैं। तुम्हें यकीन नहीं है तो कोई नहीं लेकिन दूसरों की आस्था का मजाक उड़ाना अच्छा नहीं है।"


"तो एक बात बताओ! पता कैसे चलता है कि देवता ही आया है, कोई भूत- प्रेत नहीं?" सिड़ ने व्यंगयुक्त मुस्कान के साथ कहा।


"बेवकूफ आदमी.... तू बिना इन्वीटेशन हाई- प्रोफाइल मैरिज अटैंड कर सकता है? तंत्र- मंत्र का भी यही है, जिसको बुलाया वही आयेगा, दूसरों को नो एंट्री।" आशुतोष ने सिड़ को उसी की भाषा में जवाब दिया।


"अरे यार भाई.... तुम तो सीरियस हो गये। कूल मैन.... और वैसे हाई- प्रोफाइल मैरिज में भी कई बार बिना- बुलाये मेहमान पहुंच ही जातें हैं।" सिड़ खिसियाकर हंसते हुये बोला।


"चल सो जा, सुबह जाना भी है।" आशुतोष हंसकर बोला और बत्ती बुझा दी। उसके पास भी सिड के इस तर्क का काट नहीं था।


* * *


वो एक अंधेरी सी सुरंग थी, जिसमें वो खड़ी थी। उसने घबराकर चारों तरफ देखा, लेकिन रोशनी का कोई इंतजाम नही था। वो किंकर्तव्यविमूढ़ सी वहीं पर खड़ी रही।


"अनिका...." अचानक उसे एक आवाज सुनाई दी।


"कौन है?" उसने ड़रकर आवाज लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अचानक उसे ख्याल आया कि आशुतोष को भी ऐसे ही सपनों में लाकर अघोरा उसपर हमला करता है, जिसकी वजह से वो और ड़र गई।


"अनिका.... इधर आ जाओ।" उसे फिर से आवाज सुनाई दी लेकिन इस बार वो ड़रते- ड़रते आवाज की तरफ बढ़ती चली गई।


कुछ दूर चलने के बाद वो एक सुरंग के मुहाने पर खड़ी थी। उसके आगे एक अलौकिक दृश्य था। सामने एक जंगल या यूं कहें कि उपवन था, जिसमें भांति- भांति के फूल खिले थे। विभिन्न प्रकार की तितलियां और भंवरे उन पुष्पों का रसास्वादन कर रहे थे। इस उपवन के बीचों- बीच एक तालाब था, जिसमें हंस और बत्तख किलोल कर रहे थे। अनेकों वन्यजीव जैसे हिरण, खरगोश आदि तालाब के पास दूर- दूर तक फैले हरे मैंदानों में विचर रहे थे। तालाब के पास ही एक पर्णकुटी थी, जिसके आगे एक साधु मृग- चर्म पर आसन जमाये बैठे थे।


अनिका खोयी सी इस अलौकिक दृश्य का आनंद लेती रही। कभी किसी तितली को पकड़ने की कोशिश करती तो कभी हंसो के जोड़े को निहारती। उसे इस बात का ध्यान ही नहीं था आश्रम में बैठे साधु उसकी हरकतों को देख मंद- मंद मुस्कुरा रहे थे। तभी एक खरगोश का पीछा करते- करते अनिका भी आश्रम के प्रवेश द्वार पर पहुंची। पर्णकुटी और साधु को देख वो थोड़ा सा चौंकी और झिझकते हुये आश्रम में साधु के पास पहुंची।


"क्या आप अघोरा हैं?" अनिका ने प्रवेश करते ही साधु से प्रश्न किया


"नहीं पुत्री, हम अघोरा नहीं है।" साधु ने मुस्कुराकर जवाब दिया।


"तो फिर आप कौन हैं? आपके शरीर से निकलता तेज आपकी दिव्यता का परिचय दे रहा है।" अनिका ने सम्मान सहित सिर झुकाया।


"हम कौन हैं, यह जानना आवश्यक नहीं है, अपितु हम तुमसे क्यूं मिलने आये हैं, यह आवश्यक है।" साधु ने मुस्कुराकर जवाब दिया।


"लेकिन जब तक मुझे आपका परिचय नहीं मिलता, मैं आप पर विश्वास कैसे करूं?" अनिका ने पूछा- "जिससे हमें लड़ना है वो भी बहुरूपिया है और बहुत सी शक्तियों का मालिक है।"


"तो तुम हमारा परिचय प्राप्त किये बिना मानोगी नहीं? उचित है।" साधु ने हंसकर कहा और एक दिव्यपुंज में परिवर्तित हो गये, जिसके प्रभाव से अनिका को अपनी आंखें ढंकनी पड़ीं।


"हमें संसार चालदा के नाम से जानता है।" उस दिव्य प्रकाश पुंज से आवाज आई- "कलि में पृथ्वी पर प्रत्यक्ष दर्शन नहीं मिलता इसलिये हमें

छद्म रूप में आना पड़ा।"


"महाशिव...." अनिका अवरूद्ध कंठ से बोली- "आपके दर्शन से जीवन सफल हुआ। अब बस उस श्राप से लड़ने के लिये आपका आशीर्वाद चाहिये।"


"तुम्हारा अभीष्ट अवश्य सिद्ध होगा परन्तु उसके लिये स्वयं पर और अपने साथी पर विश्वास करना। अघोरा का अंत तुम्हारे संगी के हाथों होगा परन्तु इस कार्य में तुम्हारा हर सम्भव योगदान आवश्यक है।" कहने के साथ ही दिव्यपुंज अन्तर्ध्यान हो गया और अनिका चौंककर उठ बैठी।


* * *




सुबह करीब पांच बजे सिड़ की नींद आशुतोष के बड़बड़ाने से टूटी।


"अरे यार भाई सोने दो न! दोबारा से अघोरा के सपने आने लगें हैं क्या?" सिड़ करवट बदलते हुये बोला लेकिन आशुतोष का बड़बड़ाना बंद नहीं हुआ।


सिड़ ने उठकर देखा तो आशुतोष पद्मासन लगाकर बैठा था और आंखें मूंदकर खुद से ही बातें कर रहा था। सिड़ ने जैसे ही जम्हाई ली उसे आशुतोष के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगीं।


"आप ऐसा कुछ नहीं करेंगें। मैं वादा करता हूं कि अघोरा को शरीर नहीं मिलेगा लेकिन आप अनिका को कुछ नहीं करेंगें।" आशुतोष गुस्से में बोला।


"नहीं, ये कोई ऑप्शन नहीं है। आपको मुझपर भरोसा करना ही होगा।" आशुतोष गुर्राया और आंखे खोल दी।


"क्या हुआ? भूत चढ़ आया था क्या? और अनिका को कौन क्या करने वाला है?" सिड़ ने परेशान होकर डरते- डरते पूछा लेकिन आशुतोष बस मुस्कुरा दिया।


"कोई कुछ नहीं करने वाला। तू जल्दी से फ्रेश हो जा, हमें निकलना है।" आशुतोष बोला और कमरे से निकलकर मिशा के रूम के दरवाजे को नॉक करने लगा।


"कौन है? आ जाओ...." अनिका की आवाज आई।


"वो मिशा...."


"वो बाथरूम में है...." अनिका ने बताया।


"वो एक्चुअली हमें अभी निकलना होगा तो आप लोग तैयार हो जाइये।" आशुतोष ने कहा और कमरे से बाहर जाने लगा।


"इतनी जल्दी? अभी तो सनराइज भी नहीं हुआ।" अनिका ने चौंककर पूछा।


"कुछ एमरजेंसी काम आ गया है...." आशुतोष ने कहा- "चकराता भी नहीं रूक पायेंगें, उसके लिये सॉरी।"


"इट्स ओके बट ऐसी भी क्या एमरजेंसी आ गई?" अनिका ने आशुतोष की लाल आंखों में झांकते हुये पूछा।


"अघोरा.... मुझे जल्द से जल्द उसे खत्म करना होगा।" आशुतोष ने कहा और लम्बे- लम्बे ड़ग भरकर कमरे से बाहर चला गया।


मिशा जैसे ही नहाकर निकली तो पाया कि अनिका आइने के सामने खड़ी अपने विचारों में गुम है।


"क्या हुआ दी.... कहां गुम हो?" मिशा ने कंधा झकझोरा तो अनिका होश में आई।


अनिका आशुतोष के बर्ताव से चौंक सी गई थी। उसने आज से पहले कभी आशुतोष को इतना परेशान नहीं देखा था। ईवन जब वो अघोरा के सपनों वाले फेज से गुजर रहा था, तब भी उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी लेकिन आज उसका बर्ताव कुछ अजीब सा था। कोई तो बात थी जो उसे अंदर ही अंदर परेशान कर रही थी।


"कुछ नहीं.... वो आशुतोष आया था। तुम तैयार हो जाओ, हमें अभी निकलना है।" अनिका ने कहा और बाल संवारने लगी।


"क्या अभी?" मिशा चौंककर बोली- "ये भाई भी न! कब मूड़ बदल जाये, कुछ पता नहीं होता।" बड़बड़ाते हुये मिशा बैग पैक करने लगी। कुछ ही देर बाद चारों जने हनोल से निकल पड़े।


* * * 


गाड़ी अपनी ही रफ्तार से बढ़ी जा रही थी। आशुतोष अपनी ही धुन में गाड़ी चलाये जा रहा था। उसने बायें हाथ में स्टेयरिंग और दायें हाथ में सिगरेट थामी हुई थी। थोड़ी ही देर में वो चकराता पहुंचने वाले थे। पूरे सफर में आशुतोष चुप ही रहा।


"भाई थोड़ा स्लो चलाओ यार! कहां की बस पकड़नी है?" मिशा ने बैकसीट से कहा।


"ठीक है।" कहकर आशुतोष ने गाड़ी की स्पीड़ कम कर दी।


अनिका का पूरा ध्यान आशुतोष पर ही था। उसे आशुतोष के बिहेवियर में बदलाव का कारण समझ नहीं आ रहा था। वो उसे कल रात के सपने के बारे में बताना चाहती थी, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल रहा था।


"यार भाई कुछ देर के लिये तो चकराता रूक जाते...." सिड़ ने कहा- "झरने में नहाने की विश भी पूरी हो जायेगी।"


"हां भाई! वैसे भी दो हफ्ते बाद तो इसका नहाने का मन हो रहा है।" मिशा ने सिड़ की टांग खींची।


"अभी तो रूम से नहाकर आये हैं। पानी तो एक जैसा ही होता है न!" आशुतोष ने बिना सड़क से नजर हटाये कहा।


"भाई प्लीज यार! नहीं तो हमको वहां ड्रॉप कर दो, हम रोड़वेज से आ जायेंगें।" मिशा ने बनावटी नाराजगी दिखाई। उसे पता था कि आशुतोष उसकी बात नहीं टालेगा।


"ठीक है...." आशुतोष ने अपना पर्स मिशा को थमाकर कहा- "जल्दी आ जाना। मैं चकराता में उतार दूंगा।"


"नहीं जाना मुझे।" अबकी मिशा को सच में गुस्सा आ गया। पर्स वापिस आशुतोष की गोद में फेंकते हुये बोली- "कमऑन मैन.... तुम्हारे लिये क्या- क्या नहीं किया? यहां तक कि अपनी फ्रेंड्स से भी इंट्रोड्यूस करवा दिया और तुम एक स्टॉप पर नहीं रूक सकते?" 


"ठीक है यार, मैं चकराता में गाड़ी खड़ी कर चाबी तुझे ही दे दूंगा लेकिन मैं झरना देखने नहीं आऊंगा।" आशुतोष ने झुंझलाकर कहा।


कुछ ही देर में गाड़ी चकराता पहुंची। आशुतोष गाड़ी की चाबी और अपना पर्स मिशा को देकर जल्दी आने की हिदायत दी। मिशा और सिड़ ने अनिका को भी साथ चलने को कहा लेकिन उसके मना करने पर दोनों वहां से एक तरफ बढ़ गये।


"तुम उनके साथ क्यों नहीं गई?" आशुतोष ने सीट पर फैलते हुये कहा- "तुम्हें झरने देखना पसंद नहीं?"


"नहीं वो बात नहीं। दरअसल मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" अनिका बोली।


"हां बोलो! क्या बात करनी है?" आशुतोष ने चौंककर पूछा।


"मैं सुबह से देख रही हूं, तुम कुछ उखड़े- उखड़े से हो। हनोल से भी ऐसे एकदम चलने का प्लान बना लिया। बात क्या है?" अनिका ने पूछा।


"कुछ नहीं.... वो बस रात को नींद नहीं आई ढंग से तो इसलिये...."


"तुम्हें झूठ बोलना नहीं आता।" अनिका मुस्कुराकर बोली- "सिर्फ अपनी नींद के लिये तुम मिशा को नाराज नहीं कर सकते। जरूर कुछ और ही बात है। कहो क्या बात है?"


"कुछ नहीं...." आशुतोष ने नजरें फेर लीं।


"देखो जिस सिचुएशन में हम हैं, उसमें हमें एक- दूसरे पर भरोसा करना ही होगा। आई नो कि ये अघोरा से रिलेटेड़ है और...."


"नहीं ये अघोरा से नहीं बल्कि...." बोलते- बोलते आशुतोष रूक गया और एक सिगरेट सुलगाकर कश लेने लगा। अनिका को लगा कि आशुतोष अब वो बात बताने वाला है इसलिये उत्सुक नजरों से उसे देखने लगी लेकिन जब काफी देर तक आशुतोष बस सिगरेट के कश लेते जा रहा था तो बोल पड़ी- "सिगरेट पीना अच्छी बात नहीं है। डॉक्टर होकर इतना नहीं जानते?" 


"जानता हूं.... लेकिन.... देखो हमें देवलगढ़ जाना है इसलिये हनोल से जल्दबाजी में निकलना पड़ा।" आशुतोष बोला।


"देवलगढ़.... लेकिन क्यों? और इसमें नर्वस होने वाली क्या बात है?" अनिका चौंकी।


"क्यूंकि ये जंग का आगाज है।" आशुतोष ने एक गहरा कश लिया- "तुम समझ भी रही हो? देवलगढ़.... जो राजा सत्यभानु की राजधानी थी।" 


"हां तो आज नहीं तो कल ये नौबत तो आनी ही थी। तुम्हें क्या ड़र लग रहा है?" अनिका ने व्यंग्यपूर्वक कहा।


"अपने लिये तो नहीं...." आशुतोष ने कहा और एक पल के लिये उनकी नजरें मिल गई। इस एक पल में ही दोनों एक दूसरे के दिल का हाल जान गये।


"मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा। आई प्रॉमिस।" आशुतोष ने अनिका की कत्थई आंखों में झांकते हुये कहा।


"और मैं तुम्हें...." अनिका ने कहा तो आशुतोष के चेहरे पर हंसी उभर आई।


"जानते हो आज रात मुझे एक अजीब सा सपना आया था।" अनिका ने कहा तो आशुतोष की आंखों में ड़र तैरने लगा, जिसे अनिका ने भी पढ़ लिया।


"रिलैक्स वो अघोरा नहीं था।" अनिका ने हंसकर कहा और सपने का पूरा वाकया आशुतोष को कह सुनाया।


"अब तो अघोरा की खैर नहीं...." आशुतोष भी मुस्कुराया।


तभी उनकी नजर सामने से उनकी ओर आते मिशा और सिड़ पर पड़ी। अभी बीस ही मिनट बीते थे कि सिड़ और मिशा वापस लौट आये थे।


"क्या हुआ? इतनी जल्दी आ गये!" अनिका ने चौंककर पूछा।


"अरे दीदी.... भाई के बगैर जाने का मन ही नहीं हुआ।" मिशा हंसकर बोली।


"तो फिर जाने की जिद क्यों की?" आशुतोष ने नकली गुस्से दिखाते हुये कहा।


"ताकि इस सड़े से चेहरे पर हंसी लौट आये।" मिशा ने कहा तो अनिका ने मुस्कुराते हुये शरमाकर गर्दन झुका ली।


* * *



दोपहर का समय था, जब आशुतोष की ऑल्टो बिष्ट मैंन्शन के गेट पर आकर रूकी।


"अरे सोबन काका! मर गये क्या?" आशुतोष हॉर्न बजाते हुये चिल्लाया।


"आ रहें हैं!" बूढ़े चौकीदार ने गेट खोलते हुये आवाज लगाई।


"क्या काका! गेट खोलने में इतना टाइम लगता है क्या? कौन सी परी के ख्यालों में खोये थे?" आशुतोष हंसकर बोला और गाड़ी गेट के अंदर ले ली।


"अरे क्या आशु भैया!" बूढ़ा बत्तीसी चमकाते हुये गेट बंद कर सामान उतारने गाड़ी की तरफ बढ़ा।


"अरे सामान रहने दो, हम ले जायेंगें।" आशुतोष ने सिगरेट की डिबिया बूढ़े की जेब में सरकाते हुये कहा- "ये बताओ कि पोता कैसा है?"


आशुतोष जब देहरादून लौटा था उसी दिन उसे अंदाजा हो गया था कि सोबन काका के साथ कुछ गड़बड़ है।बाद में उसने इधर-उधर से पता लगाया कि बूढ़े के पोते को कोई किड़नी की बीमारी थी और पैसों की कमी की वजह से ऑपरेशन रूका हुआ था। इसलिये उसने चुपचाप हॉस्पिटल में इलाज की रकम जमा करवा दी थी।


"बस आपकी दया और ऊपरवाले का करम है भैया! आज- कल में घर आ जायेगा। अगर आपने मदद न की होती तो लड़का हाथ से निकल जाता। आपका एहसान तो क्या ही चुका पाऊंगा।" बूढ़ा कृतज्ञता से बोला।


"अरे! इसमें एहसान की क्या बात है? समझ लेना तुम्हारे सिगरेटों का दाम है, जो बचपन से पिलाये थे।" आशुतोष मुस्कुराया और पांच सौ के कुछ नोट बूढ़े की ओर बढ़ाते हुये बोला- "ये लो! अच्छे से पोते की दवा-दारू करवाना और ठीक हो जाये तो अपनी जगह काम पर भेज देना वरना किसी दिन मेरे सामान के नीचे दब कर मर जाओगे।"


"नहीं भैया! आपसे पहले ही बहुत ले चुके हैं अब इसकी जरूरत नहीं है।" बूढ़ा आंखों में आंसू भरकर बोला- "जब जरूरत होगी तो आपके ही पास तो आऊंगा। अभी नहीं ले सकता।"


"अरे रख लो यार! खुशी से दे रहा हूं।" आशुतोष पैसे बूढ़े की जेब में ठूंसते हुये बोला- "और उसको ठीक होते ही मेरे पास भेज देना। अगर आगे पढ़ाई करना चाहता है तो कॉलेज में एड़मिशन करा देंगे नहीं तो कहीं काम पर चिपका देंगें।"


"आपका उपकार कभी नहीं भूलेंगें भैया।" बूढ़ा ने उसके हाथ माथे से लगा लिये- "भगवान जब तक जिलाएगा, आपके गुण गायेंगें।"


"गुण गाने की जरूरत नहीं है। सोच रहा हूं जल्दी से शादी कर लूं.... फिर तो दारू पीने आपके पास ही आना पड़ेगा। तो समझ लो कि ये बहू की गाली खाने का एडवांस है।" आशुतोष मुस्कुराते हुये बोला और सामान उठाकर अंदर चला गया।


अनिका भी आशुतोष के पीछे- पीछे बंगले में दाखिल हुई वो तब से आशुतोष को ही देख रही थी और चौकीदार के साथ उसके व्यवहार पर रीझ गई। वो खुद गरीब बच्चों को फ्री ट्यूशन देती थी इसलिये मदद करने का आशुतोष का ये गुण उसे पसंद आ गया।


* * * 


चारों के अंदर पहुंचते ही मि. श्यामसिंह और विमला देवी चौंक गये। अनिका तो सीधे रूम में चली गई लेकिन बाकी तीनों वहीं सोफे में धंस गये।


"अरे! तुम लोग इतनी जल्दी आ गये?" विमला देवी ने आश्चर्य व्यक्त किया- "तुम तो कल आने वाले थे न!"


"पता नहीं इस खडूस का मूड़ किस बात पर बिगड़ा? गाय- बकरियों की तरह हांककर हमें यहां लाये हैं।" मिशा ने आशुतोष की चुगली की। जबसे अघोरा का राज खुला है, तब से मिशा और विमला देवी की काफी गहरी छनने लगी थी।


"क्यूं आशु? क्या हुआ?" मि. श्यामसिंह ने पूछा।


"कुछ नहीं पापा.... बस कल मुझे और अनिका को देवलगढ़ के लिये निकलना है इसलिये आना पड़ा।" 


"अच्छा.... वैसे टूर कैसा रहा?" विमला देवी मुस्कुराईं।


"बहुत बढ़िया था। जगह तो बहुत अच्छी थी और दिन भर मजे भी खूब किये लेकिन रातभर भाई के खर्राटों के मारे नींद ही नहीं आई।" सिड़ ने आशुतोष की टांग खींची।


"हट.... बेवकूफ आदमी.... मैं कहां खर्राटे मारता हूं बे?" आशुतोष ने हंसते हुये सिड़ को अपनी कांख में दबोच लिया।


"वाह.... क्या बात कर रहे हो? मुझे तो हंसी आ रही है कि कल को जब भाभी आयेगी तो बेचारी सर्वाइव कैसे करेगी?" मिशा भी हंसते हुये बहस में कूद पड़ी।


"भाभी तो तब आयेगी जब अघोरा भैया को जिंदा छोड़ेगा...." आशुतोष हंसकर बोला- "और भाभी की टेंशन मत लो मैंनें कब से ढूंढ रखी है।"


"अच्छा? कौन है?" अनिका अभी हॉल में आई थी और आशुतोष की आखिरी बात उसके कानों में पड़ गई।


"है कोई...." आशुतोष मुस्कुराकर बोला- "जिसे ये भी नहीं पता कि कोई है, जो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है।"


"अच्छा जी!" मिशा ने आंखें नचाते हुये कहा- "उसका कोई नाम भी है या नहीं?"


"मैं तो उसे अनामिका कहता हूं...." आशुतोष की बात सुनकर अनिका का चेहरा उतर सा गया लेकिन मिशा बोल उठी- "तुम कहते हो मतलब?"


"मैं तो पहली ही नजर में उसके प्यार में पड़ गया था और पागलों की तरह उससे दुबारा मिलने का इंतजार करता रहा। उसका नाम नहीं पता था इसलिये ख्यालों में उसे अनामिका कहता था। अनामिका.... मतलब जिसका कोई नाम न हो।"


"ओह.... तो उससे दुबारा मिले?" अनिका ने पूछा।


"हां मिला न! लेकिन उसका नाम नहीं पूछा मैंनें अभी तक।" आशुतोष मुस्कुराते हुये उठा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।



* * *



क्रमशः



----अव्यक्त



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2 Comments

BhaRti YaDav ✍️

29-Jul-2021 04:36 PM

Nice

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🤫

26-Jul-2021 04:49 PM

अनामिका बढिया एक्स्प्लेनेशन....... नाइस स्टोरी

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